08-10-75   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन 

स्वयं सन्तुष्ट होने तथा दूसरों को सन्तुष्ट करने की विधि

सर्व को सन्तुष्ट करने वाले, पॉवरफुल स्टेज पर खड़ा करने वाले, आसुरी संस्कारों को मिटाने वाले शिव बाबा संगमयुगी वत्सों के प्रति बोले: -

आपको अपना संगमयुगी और भविष्य स्वरूप स्पष्ट दिखाई देता है? फ्युचर स्पष्ट दिखाई देने से पुरूषार्थ भी ठीक होता है। अन्तिम स्वरूप है ही महाकाली का अर्थात् आसुरी संस्कारों को समाप्त करने वाला। इस लिये आपको सदा स्मृति में रखना है कि मैं महाकाली स्वरूप हूँ - इस लिये आप में अब कोई भी आसुरी संस्कार नहीं रहना चाहिए। आप निमित्त बनी आत्माओं को सदा यह अटेन्शन रहना चाहिये कि मैं तीव्र पुरूषार्थ करूँ। तीव्र पुरूषार्थ का सलोगन  क्या है? (जो कर्म मैं करूँगा, मुझे देख दूसरे भी वैसा ही करेंगे) यह तो मध्यम पुरूषार्थ का सलोगन है। तीव्र पुरूषार्थ का सलोगन है - ‘जैसा संकल्प मैं करूँगा मेरे संकल्प का वैसा ही वातावरण बनेगा।’ संकल्प का भी आधार वातावरण पर और वातावरण का आधार पुरूषार्थ पर है। जो संकल्प करेंगे उसे सभी फॉलो  करेंगे। कर्म तो मोटी बात है, लेकिन संकल्प पर भी अटेन्शन संकल्प को हल्की बात नहीं समझना, क्योंकि संकल्प है बीज। संकल्प रूपी बीज कमज़ोर होगा तो कभी भी पॉवरफुल फल अनुभव नहीं होगा। एक संकल्प का भी व्यर्थ जाना, यह भी एक भूल है। जैसे वाणी में हुई भूल महसूस होती है, वैसे व्यर्थ संकल्प की भी भूल महसूस होनी चाहिए। जब ऐसी चैकिंग करेंगे तब ही आप आगे बढ़ सकेंगे। नहीं तो निमित्त बनने का जो चांस मिला है, उसका लाभ उठा नहीं सकेंगे। अब तो गुह्य महीन पुरूषार्थ होना चाहिए। अब मोटे पुरूषार्थ का समय समाप्त हो गया। कर्म और बोल में गलतियों का होना - यह है बचपन। अब वानप्रस्थी का पुरूषार्थ होना चाहिए। अब भी अगर बचपन का पुरूषार्थ करते रहे तो लक्क अर्थात् भाग्य की लॉटरी को गँवा देंगे। कभी हर्षित, कभी उदास, कभी तीव्र पुरूषार्थ और कभी मध्यम पुरूषार्थ का होना यह कोई विशेष आत्मा की निशानी नहीं। यह तो साधारण आत्मा हुई। अब तो आप सभी में विशेष न्यारापन होना चाहिए। जो अपनी पॉवरफुल स्मृति से कमज़ोर आत्माओं की स्थिति को भी पॉवरफुल बना दो। संतुष्ट न होने के कारण सर्विस रूकी हुई है। तो अब यह भी सलोगन याद रखो - संतुष्ट रहना भी है और सबको संतुष्ट करना भी है। समझा? अच्छा। 

महावाक्यों का सार

1. हमारा अन्तिम स्वरूप है महाकाली अर्थात् आसुरी संस्कारों को समाप्त करने वाला। 

2. तीव्र पुरूषार्थ का सलोगन है कि - जैसा संकल्प मैं करूँगा - मेरे संकल्प का वातावरण वैसा ही बनेगा और सभी उसे फॉलो भी वैसा ही करेंगे। 

3. एक संकल्प भी व्यर्थ जाना यह भी भूल है, ऐसी महीन चैकिंग अब करनी है। 

4. अपनी स्मृति इतनी पॉवरफुल होनी चाहिए कि कमज़ोर आत्माओं की स्थिति भी पॉवरफुल बन जाये।